घरेलू हिंसा में केवल पुरुष ही नहीं होते जिम्मेवार... Read Article

संयुक्त परिवार में जीवन यापन करना चिर काल से ही हमारी भारतीय संस्कृति का एक शोभनीय पात्र रहा है और आज के तेज़ी से बदलते इस दौर में भी कई परिवार ऐसे हैं जो आपसी सहमति से संयुक्त परिवार में ही जीवन यापन कर रहे हैं|

ऐसे में घर की महिलायें, मुख्यता बहुएँ, अक्सर उत्पीड़न का शिकार बनती रहती हैं, अब चाहे वह मानसिक हो या शारीरिक| इस स्थिति में अधिकतर, पुरुषों को ही दोषी माना जाता है क्योंकि वे अक्सर उस मोहरे की भाँति सामने रहते हैं जिन्हें उनका राजा, उनका मालिक, अपनी मनोस्थिति के अनुसार या अपने झूठे स्वाभिमान को तृप्त करने के लिये उनका भरपूर उपयोग करता है|


अब यहाँ प्रश्न यह उठता है कि घर परिवार में किस राजा या मालिक की बात पर मैंने वज़न डाला है| वह कौन है जो परिवार को परिवार न मानकर के एक राजदरबार से अधिक कुछ और मानना छोड़ देता है? तो बिना किसी दो राय के इसका सीधा सटीक जवाब है, नव पदोन्नती स्वरूप माँ से बनने वाली सासू माँ | और उनकी सेनापति की भूमिका बड़े ही सम्मान व ईमानदारी से निभाती हैं एक प्यारी बहन से बनीं नंद| 
 
हर बार पुरुष ही घरेलू हिंसा के एकल दोषी नहीं होते, जानिये कैसे- 

1. बेटे/भाई के विवाहोपरांत माता बहन में उपजी ईर्ष्या
यह सबसे पहला और सबसे अधिक देखा जाने वाला घटनाक्रम है। जबतक पुत्र/भाई का विवाह न हो, माताएं, बहनें दिन रात व्याकुल रहती हैं, उसके घर बसने की कामना, मनोकामना करती नहीं थकती हैं। और विवाह होते ही, धीरे धीरे जब पुत्र/भाई वास्तव में अपने घर को बसाने की ओर अग्रसर हो रहा होता है, पतिधर्म को निभाने के लिये अपनी धर्मपत्नी की ओर ध्यान देना शुरू कर देता है। तब वही माताएं, बहनें और भी ज़्यादा व्याकुल हो उठती हैं और उसका कारण होता है पुत्र/भाई का पुत्रवधु को समय, सम्मान व महत्ता देना। और फ़लस्वरूप वे पुत्र का अपनी गृहस्थी से, मुख़्यता अपनी धर्मपत्नी से ध्यान हटाने का भरसक प्रयास करना शुरू कर देती हैं।  

ईर्ष्या का कारण - 
माताओं बहनों का घर में आयी एक नयी सदस्या, बहु, को सदस्या न मानना अपितु उसे पराये घर से आई केवल एक कन्या के रूप में देखना।

2. माताओं द्वारा पुत्र पर आधिपत्य बनाये रखने की लालसा 
गृहस्थ जीवन के आरंभोपरांत एक पुरुष के जीवन में उसकी जीवनसंगिनी का एक सम्माननिय पद होता है। जिसके संग वह हर छोटी बड़ी बात साझा करने लगता है और उसके जीवन से जुड़े बड़े फ़ैसले भी पत्नी से विचार विमर्श कर, लेने लगता है जो कि वह पहले केवल अपनी माता संग किया करता था। फलस्वरूप, माताओं काे पुत्र के व्यवहार में आया यह बदलाव अपाचनीय जान पड़ने लगता है, उन्हें उनसे उनके पुत्र को हथियाए जाने की आशंका सताने लगती है। 
और फिर आरंभ होता है माताओं बहनों का अपने पुत्र/भाई को 
ईमोशनल ब्लैकमेल कर उसकी संगिनी के प्रति भ्रमित करने का सफ़र।

• आधिपत्य की लालसा का कारण -
ये तो सर्वज्ञ है कि किसी भी संतान के जीवन में सर्वोच्च पद उसके माता पिता का होता है। जीवन देने वाली जननी का होता है और अंतिम श्वास तक रहता है। परंतु पुत्र के विवाहोपरांत इस मानसिकता के आधार पर खुद को पुत्रवधु से तोलना ही उनको आधिपत्य की दौड़ में उतार देता है।

3. माताओं द्वारा स्वयं के अतीत का वर्तमान से प्रतिकार लेना
कई बार सास नंदों द्वारा बहु को उत्पीड़ित करने का एकमात्र यह कारण होता है कि उन्होंने भी यह सब झेला था तो अब परंपरास्वरूप उनके घर आई नयी वधु भी यह सब झेलेगी। 

प्रतिकार की भावना का कारण -
प्रतिकार की भावना जन्म लेती है कुंठा से, कुंठा खुदपे हुए अत्याचारों के विषय में कुछ न कर पाने की। कुंठा, समय पर किसी का प्रेम, सम्मान व साथ न मिलने की। 

4. माताओं की सबके समक्ष केवल स्वयं की प्रशंसा की चाह
अब आप सोचेंगे कि यदि प्रशंसा की चाह है तो उत्पीड़न क्यों किया जायेगा? तो इसका उत्तर है-
बहु का मानसिक उत्पीड़न, एक नाट्य ढ़ंग से। जहाँ सासू माताएं स्वयं को श्रेष्ठ दिखाने की चाह में बहु के निंदा रस में डूबी रहती हैं। कोई अंतर नहीं पड़ता कि बहु कितने मन, प्रेम से क्या कार्य करती है, माताओं को केवल और केवल हर परीचित से, हर मिलने झुलने वाले व्यक्ति से बहु की बुराई कर और स्वयं की बढ़ाई कर, स्वंय को अच्छा दिखाना होता है।

ऐसी प्रशंसा की चाह का कारण -
सदा स्वयं को सबसे बेहतर और बढ़िया दिखाने का कारण होता है, अभिमान। अभिमान कि हमारा पद उच्च है और हमसे बेहतर कभी कोई नहीं हो सकता और अभी कुछ ही दिन पहले घर आई कन्या तो कतई नहीं हो सकती।

अपवाद इस संसार में सबके हैं, परंतु जो सत्य है वह सदैव सत्य ही रहता है|
और अब अंत में मैं इन शब्दों से इस लेख काे विराम देना चाहूँगी- 
"जिस दिन स्त्री ही स्त्री की शत्रु बनना बंद करदेगी, उस दिन कई घर, घरेलु हिंसा से मुक्त हो जायेंगे।"

                           -निधि चौधरी







टिप्पणियाँ

  1. अति उत्तम विचार प्रकट किए आपने इस विषय और काफी बाते तो अच्छे से ध्यान देने वाली है जिसमें को मताओ का और पुत्र वधू का कोई मेल ही नहीं, जिसमें की माता जिसका क़र्ज़ हम मरते दम तक उतार सकते और दूसरा ये के माता के बाद पुत्र का ख्याल अब उसकी ही धर्म पत्नी को रखना है, मुझे यह लगता है के संयुक्त परिवार सबके बराबर के योगदान से ही आगे बढ़ता है जैसा कि रेल गाड़ी की पटरियां दोनो की सोच अलग हो सकती है पर अगर दोनो एक साथ एक दूसरे को उसका बराबर का स्थान ना दे तो वो रेल गाड़ी कभी आगे ही न बाढ़ पाए।
    धन्यवाद,
    उमाशंकर

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. जी बिल्कुल सत्य कहा आपने, बोहोत बोहोत धन्यवाद 😊🙏

      हटाएं
  2. Ye hi aaj ki sacchai hai. Jo log jante bhi hai par manna nhi chahte.

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. जी, सबसे बड़ी कमी यही है कि लोग देखते, जानते बूझते भी सच्चाई को नकारकर केवल और केवल उसे बढ़ावा देते रहते हैं।

      हटाएं
  3. बहुत खूब लिखा है, निधी जी... अब

    उन मुद्दों को उठाओ जिनके बारे में कोई बोलना नहीं चाहता....जैसे "घरेलु हिंसा से पती भी प्रताड़ित होते है, महिलाओ द्वारा "

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. जी धन्यवाद!🙏 बिल्कुल, इस मुद्दे पर भी ज़रूर बात होगी 😊🙌

      हटाएं
  4. कई बार जब लड़की की शादी होती है तो लड़की के सास ससुर कहते हैं की हम इसे अपनी बेटी की तरह रखेंगे लेकिन नौकरानी बना कर रख देते हैं और कभी ऐसा होता है की शादी के बाद लड़की अपनी मर्ज़ी चलाती है और खुद रानी बन कर बाकियों की मौजूदगी को नज़रअंदाज़ कर देती है और फिर शुरू होता है परिवार का बिखरना। और फिर फँसता है लड़का। लड़की का साथ दे तो लोग कहेंगे की पत्नी के प्यार में अंधा हो गया है और अगर माँ-बाप का साथ दे तो लोग कहेंगे की जरूर पैसों का कोई चकार है। लेकिन अगर लड़की और बाकी परिवार के लोग कुछ बातों का ध्यान रखें तो परिवार बंटने से बच सकता है।

    1. लड़कियो के मायके के जीवन में और ससुराल के जीवन में जमीन आसमान के फर्क होता है। इस लिए लड़कियों को इस बात का ध्यान अवश्य रखना चाहिए की घर का माहौल और नियम कायदे क्या हैं। अगर घर के लोगों को उसकी किसी भी बात से दिक्कत हो रही है तो उसे उस बारे में कुछ करना चाहिए।

    2. लड़कियों को अपने सास ससुर को बिलकुल अपने माँ पिता की तरह सम्मान देना चाहिये। ज़्यादातर रिश्ते इस लिए टूटते हैं की लड़कियां सास ससुर को माँ बाप जैसे नहीं समझती। अगर उसके सास ससुर किसी भी बात पर उसे डांटते है तो उसे समझना चाहिये के वो उसके माँ बाप के समान है। लेकिन अगर वो दाँट फटकार बेवजह की है तो फिर अपनी बात बीच में रखनी चाहिये।

    3.आपके ससुराल अब आपका भी घर है और यहाँ का सम्मान आपका सम्मान भी है। बहुत सी लड़कियां अपने घर की बुराइयाँ अपने मायके में करती रहती हैं। मेरे घर में तो आम बात है। ये काम बिलकुल नहीं करना चाहिये। इसकी जगह जो दिक्कत है वो सब के सामने सुलझा लेनी चाहिये।

    4. हमारे देश की ज़्यादातर लड़कियों का सपना होता है की उनकी जिंदगी में कोई राजकुमार की तरह आएगा और अपनी राजकुमारी बना कर रखेगा। और वो चाहती हैं की उसके और उसके पति के बीच में कोई ना आए। लेकिन क्योंकि घर के कामों की वजह से उन्हे समय नहीं मिल पाता। इस लिए आजकल ज़्यादातर लड़कियां ऐसे लड़के की उम्मीद में रहती है जिसमे बहुत बड़ा परिवार ना हो। लेकिन अगर आप ऐसी सोच रखेंगे तो कैसे काम चलेगा। सब को ऐसा नसीब तो नहीं होता।

    5. कभी भी अहंकार ना करना। फिर चाहे वो वो आप सुंदरता पर हो या धन पर। हो सकता है की आपके घर से ससुराल को बहुत सी वस्तुएँ दी गयी हों। कभी भी इस बात पर अहंकार ना करना की हो कुछ भी आया है मेरी वजह से आया है। ये समझिए जो कुछ भी हमारा है मेरा नहीं।

    6. कोई काम नहीं आता। जैसे की खाना बनाना या घर के कोई और काम। चिंता ना करें। सीधा सास, भाभी या ननदों से बात करें। वो आप को सीखायेंगी। आप जितना समय उनके साथ व्यतीत करेंगी आप को उतना ही समय मेल मिलाप करने को मिलेगा।

    7.अगर आप नौकरी करतीं हैं और इसमे आप के ससुराल वालों की भी कोई आपत्ति नहीं है। तो अपने काम का एक टाइम टेबल निश्चित करें। वो सास जिनहे आप के नौकरी करने से कोई आपत्ति नहीं वो आप की मदद जरूर करेगी। पहनावा वही पहने जिस पर किसी को कोई आपत्ति ना हो।

    8.अगर सास ससुर बुरे निकले तो क्या करेंगे। ऊपर की कोई भी बात काम नहीं आएगी फिर चाहे आप कितनी भी कोशिश कर लें। उनको कोई ना कोई बहाना मिल ही जाएगा। सास ससुर बुरे तब निकलते है जब वो लालची हो और दिल के बुरे हों। जब दहेज नहीं मिलता तो वो अपना रंग दिखाते है। ऐसी परिस्थि में सीधा पति से बात करें। उनकी राय लेने के बाद अपने मायके वालों से।

    नोट : ऊपर जितना कुछ भी लिखा है सब मेरे अपने विचार है। मैं ये नहीं कहता की मैंने जो कुछ भी लिखा सब सही लिखा है। लेकिन ये बातें अक्सर काम करती है।

    जवाब देंहटाएं
  5. लाजवाब लिखा है निधि मैं तुम्हारे हर एक विचार से सहमत हूं। बहुत सुन्दर शब्दों का प्रयोग करते हुए अपने विचार व्यक्त किया है तुमने। आशा करती हूं की जो भी इसको ध्यान से पढ़कर समझेगा वो अपनी निजी जिंदगी में भी इनसे मिली सीख को अमल करेगा और घर में एक पॉज़िटिव वातावरण बनाएगा। Keep it up!

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. हाँ बहन, बहुत बहुत धन्यवाद व आभार 🙏, इस लेख का लिखा जाना वास्तव में तभी सफ़ल होगा जब लेख का सार समझकर लोग अपने जीवन का विश्लेषण करें व आवश्यक बदलाव लायें।

      हटाएं

एक टिप्पणी भेजें